Pages

Monday, June 27, 2011

मुझे पता है कि तुम सो रही हो...


मुझे पता है कि तुम सो रही हो,
इस एहसास के साथ
कि
मैं तुम्हारे बेहद क़रीब हूं।

और इस उम्मीद के साथ
कि
ज़िन्दगी भर यूं ही
तुम्हारे सिरहाने रहकर
तेरी हर परेशानी को
अपना बनाऊंगा।

तेरी इन बन्द आंखों में,
मुझे पता है
मेरा ही ख्वाब है।

तेरे ख़ामोश होंठ,
जो अभी पल भर के लिये शान्त है,
पर जिसकी आवाज़
किसी मधुर संगीत की तरह
हमेशा मेरे कानों में
गूंजती रहती है।
मुझे पता है
कि
उनमें सिर्फ़ मेरा ही नाम है।

मुझे पता है कि तुम सो रही हो,
और तुमने मेरे हाथों को थाम रखा है,
उन्हें पकड़कर
अपने सीने के क़रीब कर रखा है,
क्यों कि
तुम मुझे ये एहसास कराना चाहती हो,
कि
तुम्हारे दिल की हर धड़कन भी,
मेरे एहसास से धड़कती है।
तुम्हारी सांसें भी,
मेरी मौज़ूदगी से चलती है।

मुझे पता है कि
अभी तुम बेफ़िक्र हो,
क्यों कि
तुम वाकिफ़ हो,
इस खूबसूरत सच से
कि
मेरे आगोश में तुम बेहद सुरक्षित हो।

मैं तुम्हारे बगल में
करवट भी नहीं बदलना चाहता,
क्यों कि
मेरा ज़रा भी हिलना,
तुमको इस
बेहद ख़ूबसूरत नींद से,
विचलित कर देगा।
तुम्हारे मन को
मेरे दूर जाने के एहसास से,
उद्वेलित कर देगा।

मैं तुम्हे जगाकर
तुमसे बात करना चाहता हूं।
कितना प्यार है
तुम्हारे लिये,
ये जताना चाहता हूं।
पर,
तुम्हारी नींद तोड़ने कि
हिम्मत नहीं जुटा पा रहा हूं।

तेरे होंठों को कहते तो बहुत सुना है,
पर
अभी तुम्हारी बन्द आंखें कुछ कह रही है,
ओर मै उस सच्चाई को सुनना चाहता हूं,
तुम्हारी बन्द आंखें भी
खुशी से चमक रही है,
जरूर तुम सपनें में भी हमसे बातें कर रही हो।
अपनी हसरतें,
अपने एहसास,
सब हमसे बयां कर रही हो।

तुमने नींद में भी,
मेरे हाथों को,
कस के थाम रख़ा है।
तुम्हे डर है,
कहीं मैं खो न जाऊं तुमसे।

अपने आपको,
मुझमें,
समा रखा है,
तुम्हे डर है,
कहीं ये जगह छिन न जाये तुमसे।

पर क्या तुझे पता है?
कि
मै भी,
तेरे हर एहसास की,
कितनी कद्र करता हूं।
तेरे ज़िन्दगी मे होने से,
फ़क्र करता हूं।
ये तेरी ही मोहब्बत है,
जिसके लिये,
मैं हर पल जीता हूं।

पर क्या तुझे पता है?
कि
नींद में ज़ब तेरी पकड़ ढीली पड़ जाती है,
तब उसे और कस लेता हूं।
तु ज़रा भी दूर चली जाती है तो,
तुझे और क़रीब कर लेता हूं।
क्यों कि
मैं भी डरता हूं,
कहीं खो न जाऊं तुमसे।

अपने दिल के हर कोने में तुमको ही बिठाया है,
क्यों कि
मैं भी डरता हूं,
कहीं ये जगह छिन न जाये तुमसे।

मुझे पता है कि तुम सो रही हो,
मेरे पास होने के एहसास से,
बेफ़िक्र हो।
मेरे आगोश मे तुम सुरक्षित हो,
इसलिये मै करवट भी नहीं लेना चाहता,
तुझे रत्ती भर भी परेशान नहीं करना चाहता।

ताउम्र तेरे सिरहाने रह कर,
मैं तुम्हे खूब प्यार करूंगा,
न टूटे कभी
तेरी ये प्यारी सी नींद,
न बिख़रे कभी ख़्वाबों का कारवां,
तेरे हर बढ़ते कदम के नीचे,
अपनी हथेलियां रखूंगा।
और युही तेरा हाथ थाम कर सो जाऊंगा।

बस यूहीं चलता रहा मैं…!!


आज़ादी की चाहत में, आज़ाद न रहा मैं,
ख़ुशियों की तलाश में, ख़ुशियों से महरूम रहा मैं,
चाहता था भर लूं आगोश में, एक ख़ुशनुमा मंज़र,
पर, हर पल द्विधाओं से ही घिरता रहा मैं।
      पिंज़रे की ख़िड़की से नई दुनिया निहारता रहा मैं,
      कभी मै भी उड़ पाऊंगा, बस यही आस करता रहा मैं,
      साबित कर सकूं ख़ुद को, इसलिये ऊंचे से ऊंचा आसमां तलाशता रहा,
      पर, उड़ने की चाहत मे, जंजीरों से जकड़ता रहा मैं।
सुना था ख़्वाब बन्द आंख़ों मे सजते हैं,
पर खुली आंख़ों से सपने संजोता रहा मैं,
और जब-जब लगा अब सपने हक़ीकत मे बदल जायेंगे,
बेबस होकर, हर ख़्वाब बिख़रते देखता रहा मै।
      जोश ओर ताक़त से खुद को भरकर,
      अपने लिये नये मुकाम तलाशता रहा मैं,
      आगे बढ़कर चुनौतियों से भिड़ने की ठानी थी,
      पर  दौड़ना तो दूर, ख़ड़े होने की हिम्मत बटोरता रहा मैं।
ज़िन्दगी जीने के लिये तो मै कभी जिया ही नहीं,
अपने दर्द छिपाने को, हर पल मुस्कुराता रहा मैं,
अब वो वक़्त कहां से लाऊं, जो मुझे जीना सिखा सके,
उस वक़्त से ही तो हरदम लड़ता रहा मैं।
      ताक़त नहीं इतनी,
      कि वक़्त से मुक़ाबला कर सकूं,
      इसीलिये हरदम,
      वक़्त की मार सहता रहा मैं…।।

Sunday, June 26, 2011

क्या है मुकद्दर ?



क्या है मुकद्दर ?
इस मुकद्दर से ड़ना है मुझे,
ख़ामोश हीं रहना है कभी,
ज़िन्दगी से हर रोज़ कुछ कहना है मुझे,
जो मिला है वो काफ़ी नही,
जो ना मिला उसको हासिल करना है मुझे,
कोई कितनी भी तख़लीफ़ क्यों दे?
अपने सपनों का हां पाना है मुझे।
अपनी इल्तज़ाओं के ख़ातिर जी रहा हुं,
पनी क़दी के भरोसे हीं चलना मुझे,
अपने रास्ते खुद नाने का शौक रखता हूं,
न्ज़िल कितनी भी दूर क्यों ना हो?
किसी और के नक्शे कदम पर नहीं चलना मुझे।