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Monday, June 27, 2011

बस यूहीं चलता रहा मैं…!!


आज़ादी की चाहत में, आज़ाद न रहा मैं,
ख़ुशियों की तलाश में, ख़ुशियों से महरूम रहा मैं,
चाहता था भर लूं आगोश में, एक ख़ुशनुमा मंज़र,
पर, हर पल द्विधाओं से ही घिरता रहा मैं।
      पिंज़रे की ख़िड़की से नई दुनिया निहारता रहा मैं,
      कभी मै भी उड़ पाऊंगा, बस यही आस करता रहा मैं,
      साबित कर सकूं ख़ुद को, इसलिये ऊंचे से ऊंचा आसमां तलाशता रहा,
      पर, उड़ने की चाहत मे, जंजीरों से जकड़ता रहा मैं।
सुना था ख़्वाब बन्द आंख़ों मे सजते हैं,
पर खुली आंख़ों से सपने संजोता रहा मैं,
और जब-जब लगा अब सपने हक़ीकत मे बदल जायेंगे,
बेबस होकर, हर ख़्वाब बिख़रते देखता रहा मै।
      जोश ओर ताक़त से खुद को भरकर,
      अपने लिये नये मुकाम तलाशता रहा मैं,
      आगे बढ़कर चुनौतियों से भिड़ने की ठानी थी,
      पर  दौड़ना तो दूर, ख़ड़े होने की हिम्मत बटोरता रहा मैं।
ज़िन्दगी जीने के लिये तो मै कभी जिया ही नहीं,
अपने दर्द छिपाने को, हर पल मुस्कुराता रहा मैं,
अब वो वक़्त कहां से लाऊं, जो मुझे जीना सिखा सके,
उस वक़्त से ही तो हरदम लड़ता रहा मैं।
      ताक़त नहीं इतनी,
      कि वक़्त से मुक़ाबला कर सकूं,
      इसीलिये हरदम,
      वक़्त की मार सहता रहा मैं…।।

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