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Tuesday, June 5, 2012

सभ्य समाज़्…!!

रो-रो कर ज़माने से,
गुज़ारिश करते रहे हम,
एक दूज़े के बिना जी नहीं सकते,
इसलिये अपने प्यार की भीख़ मांगते रहे हम,

पर किसी ने भी हमारी एक न सुनी,
गैर तो गैर, अपनों का भी सहारा खोते रहे हम,
बेदखल करता गया समाज़ हमको,
और युहीं मरने के लिये मज़बूर होते रहे हम,

न जाने कब तक ये समाज़,
हमारी हत्यायें कर,
हमें समाज़ की गन्दगी बताता रहेगा,
सदियों से खुद इतनी घिनौनी हरक़त करता आ रहा,
ये समाज़,
न जाने और कब तक,
सभ्य कहलाता रहेगा…?

1 comment:

  1. is jindagi ki ek sacchi kahani hu main, jal se juda ek jindgani hu main, khas ye duniya yah samjha pati, lekin samjha jaye to tute dil ki kahani kaha ho!!!!!!!!!!

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